मंगलवार, 11 जनवरी 2022

बचो बचो.. जीवात्मा को बचाओ नहीं तो जा रहे हो

बाबा जयगुरुदेव बता रहे हैं कि इस शरीर में जीवात्मा के आने का जो रास्ता है, वही जाने का भी है। जीवात्मा इस मनुष्य शरीर में जो थोड़े दिनों के लिए बैठाई गई है, वो नाम के... यानी शब्द के सहारे उतारी गई है और जब वापस जाएगी तो इसी नाम की डोर को पकड़ कर ही जाएगी; एक ही रास्ता आने का और एक ही रास्ता जाने का है, दो रास्ते न कभी हुए न कभी होंगे लेकिन आपसे वो डोरी छूट गई तो आप उसको भूल गए और पकड़ नहीं पाते हो और कोई आपको जानकार भी नहीं मिला, जो आपको वो डोरी पकड़ा दे तो आप बस भूले हुए बैठे हो ऐसे ही ये मनुष्य शरीर व्यर्थ चला जाएगा।

Baba Jaigurudev
Jaigurudev is the name of God

महात्मा कहते हैं कि बचो बचो श्वांसे ख़त्म हो रही हैं थोड़ा जीवन बचा है इसमें अपना काम कर लो नहीं तो इसके छूटते ही फिर तुम जा रहे हो नरकों और चौरासी की तरफ लेकिन तुम बात को सुनते ही नहीं हो। बाबा जयगुरुदेव कह रहे हैं कि - "तुम बचो बचो मनुष्य शरीर में जीवात्मा को बचाओ नहीं तो जा रहे हो। तो आप सुनते ही नहीं हो कोई कुछ कह रहा है। ये देश आपका नहीं है। वो तो अपना घर तो छोड़ दिया। उसका रास्ता है। इसी मनुष्य शरीर से आने का भी है और जब वापस जाओगे तो उसी रास्ते से जाओगे। दो रास्ते न कभी हुए न कभी होंगे। वो नाम से शब्द से पकड़ करके आए हो। और दोनों आँखों के पीछे बैठ गए, और सामने डोरी लटकी हुई है शब्द की, नाम की ; बीच में गंदगी जमा हो गई... डोरी छूट गई, बस इतना ही है। उसने लटका रखी है डोरी आपके सामने, ये नहीं कि डोरी कहीं चली गई, सामने ही है... और सामने डोरी होते हुए नहीं पकड़ पाते हो आप.. तो क्यों ऐसा नहीं होता... क्योंकि कोई भेदी नहीं मिलता। जानकार नहीं मिलता। जिसने डोरी पकड़ ली हो और वो आपकी जो बिछुड़े हुए हो उस डोरी को पकड़ा के चढ़ा देगा नाम से। 


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सतगुरु के सिवाय किसको तुम्हारी जीवात्मा की फ़िक्र है?

बाबा जयगुरुदेव अपने एक उद्बोधन वचन में समझा रहे हैं कि संत और महात्मा जीवात्मा को उसकी दुर्दशा का एहसास कराते ये याद दिलाते हैं कि ये मनुष्य शरीर जिसमें उसको कुछ दिनों के लिए बैठाया गया है वो उसे अपने घर वापस जाने के लिए मिला है। सच्चे संत सतगुरु ही उसको याद कराते हैं कि वो कहाँ से आई थी और कैसे यहां आकर इस मायाजाल में फंसकर अपना असल घर और सच्चे पिता को भूल गई और यहाँ भोगों में फंसकर ये अनमोल शरीर जो मुक्ति पाने का एकमात्र साधन है उसको कौड़ियों के मोल खोए दे रही है।

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ये शरीर बार बार नहीं मिलता है। इससे निकालकर फिर चौरासी के चक्कर में डाल दी जाएगी तो उन शरीरों में साधना नहीं हो सकती; कैसे इस कैदखाने से निकल पाएगी? उसको ये बहुमूल्य अवसर इस बार मिला लेकिन काल भगवान् ने इसके चारों तरफ मन बुद्धि चित्त और अहंकार को इसकी निगरानी करने के लिए बैठा दिया। वो इसको फंसाए रहते हैं और अपना असल काम करने नहीं देते ; बेकार की उलझनों में उलझाए रहते हैं , और ऐसे ही पूरा जीवन व्यर्थ चला जाता है। सतगुरु को इसकी फ़िक्र है इसलिए वो बराबर जगाते चेताते रहते हैं कि ये अनमोल समय व्यर्थ न चला जाए और जीवात्मा फिर से काल और माया के चक्र में फंसी न रह जाए। सतगुरु के सिवा और किसी को जीवात्मा की मुक्ति की परवाह नहीं हो सकती कि जीवात्मा इस कुचक्र से मुक्त होकर अपने घर वापस जानी चाहिए। बाबा जयगुरुदेव अपने इस सम्बोधन में कहते हुए सुने जा सकते हैं कि - "मैं तो सिर्फ तुमको याद कराता हूँ और कहता हूँ कि ये मनुष्य शरीर अनमोल है; ऐसे किराए का मकान है, लेकिन इतना अनमोल है कि दूसरे शरीर में कभी साधना नहीं है, पशु पंछी में साधना है नहीं, यही पंच-भौतिक शरीर है, जिसमें साधना इसलिए हो सकती है कि इसमें बुद्धि पीछे का भी सोचती है और आगे का भी सोचती है। तो देह में काम करती है। उसको ये अवसर दिया गया है कि तुम अपने लिए ये काम करो। अब वो सुरत तो फंस गई बेचारी, अब वो क्या करे असहाय हो गई। ये मन बुद्धि चित्त और अहंकार ये चारों तरफ बैठ करके इसकी शक्ति को क्षीण कर दिया, और इन्द्रियों के भोगों में लग गए। अब जब तक कोई समझदार और जानकार आपको न मिले तब तक कौन जगाए? कौन चेताए? किसको फ़िक्र है कि जीवात्मा की गति होनी चाहिए और इसको इससे बचाओ नहीं तो ये जाने वाली है?"


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आपकी मृत्यु होने लगे तो पुकार लेना मैं आपकी सहायता करूँगा

अपने एक अति महत्वपूर्ण सन्देश में बाबा जयगुरुदेव ने कहा कि मृत्यु के समय बेहद तकलीफ होती है और कोई साथ नहीं दे सकता। कोई अपना सगा-सम्बन्धी, नाते-रिश्तेदार, धन-दौलत कुछ आपके काम नहीं आता। आप उस बेइंतहां तकलीफ से जब गुज़र रहे होते हो तब आपके अपने जिनके लिए आपने अपना सारा जीवन दे डाला वो चाह कर भी आपकी कोई मदद नहीं कर सकते। माँ बाप की मदद बच्चे नहीं कर सकते और बच्चों की मदद माँ बाप नहीं कर सकते. कोई हितैषी दोस्त पडोसी कोई साथ नहीं आ सकता। आपकी कमाई हुई दौलत और जीवन भर जमा किया हुआ सामान आपके आस-पास बिखरा हुआ पड़ा है लेकिन कुछ आपके काम नहीं आ सकता। जीवन भर कमाई हुई दौलत आपकी ज़िन्दगी के लिए एक सांस खरीद कर आपको नहीं दे सकती। उस समय मौत जैसे जैसे आपको अपनी आगोश में समेटती है घोर पीड़ा होती है; आँखें बंद होने लगती हैं, कान सुनना बंद कर देते हैं, जुबान हिल नहीं पाती, शरीर जड़ होने लगता है, लाख कोशिश करके भी आप एक ऊँगली नहीं हिला सकते और जीवात्मा को बाहर निकाल दिया जाता है; तब जीवात्मा चाह कर भी शरीर के भीतर नहीं जा पाती। अब ऐसे में कल्पना कीजिये कि जीवात्मा जब अपने शरीर से बाहर निकल कर किसी को अपने होने का एहसास नहीं दिला सकती, किसी से बात नहीं कर सकती तो वो खुद को कितना अकेला और बेबस महसूस करती होगी? ऐसे में कौन उसका साथ दे सकता है? 

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ऐसे में केवल वही उसकी सहायता कर सकता है जो उसे देख सकता हो, सुन सकता हो, जो आत्मा परमात्मा के विज्ञान को जानता हो, जो समर्थ हो ,सक्षम हो और वो सिवा सतगुरु के और कौन हो सकता है? परम पूज्य परम संत बाबा जयगुरुदेव अपने उद्बोधन में कहते हैं कि मैं उस वक़्त भारी पीड़ा में तुम्हारी सहायता करूँगा। जब कोई तुम्हारी सहायता न करे तो अंदर ही अंदर बोलना जयगुरुदेव जयगुरुदेव जयगुरुदेव तो मैं तुमको मिलूंगा और तुम्हारी मदद करूँगा। दो बार सबसे पूछते भी हैं कि क्या बोलोगे? तो सब जोर से बोल कर बताते हैं कि जयगुरुदेव बोलेंगे और तब बाबा जयगुरुदेव कहते हैं कि जयगुरुदेव बोलोगे तो मैं तुम्हारी मदद करूँगा, जयगुरुदेव नहीं बोलोगे तो मदद नहीं करूँगा क्योंकि ये प्रभु का जगाया हुआ नाम शक्ति रखता है और इसके लिए हुक्म है कि जो इसका स्मरण करेगा उसकी मदद होगी। बाबाजी ये भी सबसे कहना नहीं भूलते कि मैं कोई महात्मा नहीं हूँ, न पहले था न अब हूँ और न आगे कभी लेकिन आपकी मदद ज़रूर करूँगा। बाबा जयगुरुदेव ने जो कहा आप इस वीडियो में भी सुन सकते हैं; उन्होंने कहा-
"आपकी मृत्यु होने लगे, और उस वक़्त में कोई भी आपका साथ न दे, कोई भी आपका रिश्तेदार, घर का, धन दौलत कोई साथ न आए और भारी पीड़ा हो तो हमारी बात याद रखना; हम कोई महात्मा नहीं हैं, न पहले थे, न अब हैं, न आगे... मैं तो आपकी तरह से एक आदमी एक इंसान हूँ, जब आप पर मुसीबत आए उस वक़्त मौत के वक़्त में और कोई भी साथ न दे और आपकी आवाज़ बंद होने लगे इतनी बात हमारी याद रखना कि  अंदर ही अंदर श्वाँस श्वाँस पर बोलना जयगुरुदेव जयगुरुदेव, क्या बोलोगे? जब तुम जयगुरुदेव बोलोगे अंदर अंदर तो मैं आपको मिलूंगा... मैं मिलूँगा.. मैं आपकी मदद करूँगा। मैं उस समय पर भारी मुसीबत में आपकी सहायता करूँगा। उस समय जब भारी संकट होगा। तो समझ लीजिये कि आत्मा की संभाल सहायता करना कोई खेलबाजी कोई तमाशा तो नहीं है; मैं सहायता करूँगा उस आत्मा की.. लेकिन जयगुरुदेव बोलोगे तो सहायता करूंगा, जयगुरुदेव नहीं बोलोगे तो सहायता नहीं करूंगा, क्योंकि जयगुरुदेव जगाया हुआ नाम है उसके लिए हुक्म है कि जो उसको पुकारेगा उसकी सहायता होगी। 


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सोमवार, 10 जनवरी 2022

बरक़त किसको कहते हैं?

जिनके पास "सब-कुछ" है उनको भी संतोष नहीं, और जिनके पास "सब-कुछ" नहीं है, उनकी तो बात ही क्या कही जाए? बाबा जयगुरुदेव अपने एक उद्बोधन में जो समझाना चाह रहे हैं वो है कि हर कोई चाहता है कि वो संपन्न हो.. सुखी हो.. उसके पास किसी चीज़ की कमी न हो; और ऐसा होने के लिए हर इंसान दर-दर भटक रहा है। साधन संसाधनों के पीछे भाग रहा और जमा किये जा रहा है। ..लेकिन वो करोड़ों अरबों जमा करने के बाद भी असंतुष्ट ही है और फिर और भागे ही जा रहा है। वो चाहता है कि उसे सभी का.. माता-पिता का, गुरु का, बुज़ुर्गों का, ईश्वर का सबका आशीर्वाद मिले, दुआ मिले जिससे उसको बरक़त मिले और वो सुखी और संपन्न हो, उसके घर में परिवार में उसके बच्चों को किसी तरह की कोई कमी न रह जाए; वो अपना सारा जीवन इसी में निकाल दे रहा है।

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ये बात सही है कि आशीर्वाद मिलता है, दुआ मिलती है तो बरक़त भी मिलती है, लेकिन इस सब के ऊपर एक और तरह की दौलत है और वो है संतोष की दौलत। जब तक ये दौलत न हो बाकि सब दौलत कितनी भी हो जाए... पूरा नहीं ही पड़ता है; लेकिन जिसने ये संतोष की दौलत को पा लिया, उसने सब कुछ पा लिया। वैसे तो करोड़ हो.. अरब-खरब हो, कितना भी हो और बढ़ता ही चला जाए, कम ही लगता है; लेकिन जिसके पास संतोष की दौलत है, उसके लिए फिर दूसरी दौलत सब धूल के समान हो जाती है। इसका ये कतई अर्थ नहीं कि द्रव्य का महत्त्व नहीं है; ..है, लेकिन द्रव्य जीवन का साधन मात्र होना चाहिए जीवन का अंतिम लक्ष्य या परम साध्य नहीं। ..तो जब आपके पास संतोष की दौलत नहीं तो आपको क्या बरक़त का अनुभव होने वाला है?

बाबा जयगुरुदेव अपने संक्षिप्त उद्बोधन में कह रहे हैं कि.. "बरक्कत मिले, उसकी दुआ मिले, आशीर्वाद मिल जाए तो तुम संपन्न होओ.. बरक्कत का मतलब ही यही है कि कोई चीज की कमी नहीं। खाने का, कपडे का, रहने का, आए-गए का, बाल-बच्चों का कम नहीं पड़ेगा। उसको बरक्कत कहते हैं। अब इस समय पर तो आपको कमी है। घर में होते हुए कुछ नहीं, रुपया होते हुए कुछ नहीं, करोड़ होते हुए कुछ नहीं, अरब होते हुए कुछ नहीं.. सब होते हुए भी कुछ नहीं, इसलिए कमी है। वहाँ कोई कमी नहीं.. जब आया संतोष धन सब धन धूल समान। जब संतोष आया तो जितना भी धन है संसार का बना हुआ, माना हुआ वो सब धूल है। आपने तो कभी संतोष किया नहीं।"


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शनिवार, 8 जनवरी 2022

अब भी नहीं चेते तो जीवन बेकार चला जाएगा..

 मनुष्य अपने जीवन में हज़ारों तरह की उलझनों में फँसा रहकर पल पल जीवन को यूँ ही कौड़ी के दामों लुटवा देता है... और जब ये शरीर छोड़ता है तब यहाँ से, इनमें से कोई चीज़ वो अपने साथ नहीं ले जा पाता है, सब यहीं छोड़कर चला जाता है। ये शरीर जिससे वो जीवन भर प्यार करता रहा, इसे सजाता सँवारता रहा, वो शरीर तक भी नहीं ले जा सकता.. उसे भी यहीं छोड़कर चला जाता है। जीवात्मा के इस शरीर से निकलते ही लोग इसे जला देते हैं, दफना देते हैं। इस बात से ये पता चलता है कि जीवन भर जिन सामानों के पीछे भागता रहा उनमें से कोई भी चीज अपनी नहीं थी, सब बेकार। जिसके बड़े-बड़े राज-पाट, माल-असबाब, महल-फाटे थे, वो एक सुई की नोक बराबर भी कोई सामान यहाँ से लेकर नहीं जा सके, तो कोई क्या ले जाएगा? जितने रिश्ते जो नाते जीवन भर बनाते रहे वो भी कोई साथ नहीं गया, तो इस से ये पता चलता है कि ये सब रिश्ते भी यहीं तक हैं जब मौत का फरमान आएगा तो सब छूट जाएंगे न तो कोई जाने वाले को रोक पाएगा और न जाने वाले के साथ जाएगा। अब सवाल ये उठता है कि फिर सत्य क्या है?

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महात्मा बताते हैं कि ये सामान ये रिश्ते सब इस शरीर के साथ के हैं जीवात्मा के साथ के लिए कुछ नहीं है। जीवात्मा जब तक इस शरीर में है इन सब का साथ ले लो इन सामानों से काम ले लो और वो असल काम करो जिसके लिए इस शरीर में भेजे गए हो। तुम असल काम भूलकर इन सामानों में लग गए तो अंत समय क्या हिसाब दोगे कि तुमने ये अनमोल मनुष्य शरीर पाकर क्या किया? इसलिए जहाँ हो वहाँ रहो घर में रहो परिवार के बीच रहो, माता-पिता की सेवा करो आए गए का सत्कार करो बच्चों का पालन पोषण करो, पारिवारिक सामाजिक सरोकार पूरे करो, अपना खेती-दुकान-दफ्तर का काम जो भी आप करते हो ईमानदारी और मेहनत से पूरा करो। आपको कुछ भी छोड़ने को नहीं कहा जाता है, ये नहीं कहा जाता कि आप एक लंगोट धारण करके जंगलों में निकल जाओ, पहाड़ों पर्वतों में, गुफाओं और कंदराओं में जाकर कठोर तप और साधना करो.. ये कोई आपसे नहीं कहता है; और कोई कहता भी है तो आप मत मानो। .. लेकिन अपने घर में रहकर अपने परिवार के बीच रहकर कम से कम वो काम तो करो जिसके लिए ये मनुष्य शरीर तुमको बड़ी मुश्किल से मिला है। नरकों और चौरासी के लम्बे कड़े यातनाओं और प्रताड़नाओं के दौर से गुज़रकर जब तुम मनुष्य योनि में आए तब माँ के गर्भ में उलटे लटके हुए तुमने उस प्रभु से जो कौल-करार किया था कि हे प्रभु मुझे इस नर्क से बाहर निकालो मैं आपका भजन करूंगा उस वचन को तो निभाओ। चौबीस घंटे में से दो घंटे तो उस प्रभु का भजन करो। इतना भी नहीं किया तो क्या किया तुमने जीवन में ? भजन के लिए महात्मा कहते हैं कि तुम ये जो हाथ से बाजे बजाते हो और मुँह से गाना गाते हो इसका नाम भजन नहीं है, ये तो उस भजन की नक़ल है जो तुम्हारे अंदर ऊपर के आत्मिक लोकों और रूहानी मंडलों में अखंड हो रहा है। वही भजन करने के लिए सतगुरु कहते हैं उसी से कल्याण होने वाला है और किसी से नहीं। .. और वो कैसे किया जाता है उसका रास्ता तो सतगुरु ही बताते हैं। 

बाबा जयगुरुदेव कहते हैं कि जो जिस जात का, कौम का.. पढ़ा-लिखा-अनपढ़ कोई भी हो, मजदूरी खेती दफ्तर का काम दुकान का काम जो काम करता हो ईमानदारी और मेहनत से करे और उस से जो कुछ भी मिले वो ले आए और बच्चों को खिलाए पहनाए और अपना भी खाए पहने। और जो हम आपको बता रहे हैं, बैठकर एक घंटा सुबह अपनी जीवात्मा से सच्चे मालिक का भजन और एक घंटा शाम को करे तो आँख खुल जाए। आगे बाबा जयगुरुदेव कह रहे हैं कि ये दो घंटे तो आप हमको दे दो और आपके पास जो बाईस घंटे हैं उसमें आप कुछ सो लेना, कुछ काम कर लेना.. कुछ लोगों की सेवा कर लेना... ऐसे समय पूरा हो जाएगा काम पूरा हो जाएगा। और जब ये शरीर छोड़कर जाना पड़ेगा तब यही दो घंटे सार्थक होंगे और बाकी सब बेकार।


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गुरुवार, 6 जनवरी 2022

तुमको मौका दिया लेकिन तुम किसी से पूछते ही नहीं हो

बाबा जयगुरुदेव कहते हैं कि कितने लाखों करोड़ों जन्म पशु परिंदों के कीड़े मकोड़ों के तुमने लिए और कितनी तुमने नरकों में मार खाई.. और कितनी यातना प्रताड़ना सही, चौरासी लाख योनियों में फिर फिर चक्कर लगाने में कितने युग बीत गए तब जाकर तुमको ये अनमोल मनुष्य शरीर मिला और तुमको मौका मिला कि तुम इस शरीर में रहते हुए अपनी जीवात्मा का कल्याण कर लो, इसको इसके असली घर पहुंचा दो, जिससे फिर इस शरीर के ख़त्म होने के बाद तुम्हारी जीवात्मा को वही सब यातनाओं और प्रताड़नाओं के चक्करों में न फंसना पड़े;..

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 लेकिन तुम किसी से पूछते ही नहीं हो, अपने झूठे अहंकार में, अज्ञान में ये अनमोल जीवन यूँ ही गंवाए दे रहे हो। जो लोग ये समझते हैं कि आत्म साक्षात्कार और आत्म कल्याण जैसी कोई चीज़ नहीं होती और ईश्वर का दर्शन कभी नहीं किया जा सकता, ऐसे लोगों के लिए बाबा जयगुरुदेव अपने उद्बोधन में कहते हैं कि ऐसे कितने ही लोग थे जो अपनी इस क्षमता को जानते ही नहीं थे लेकिन जब उनको धीरे धीरे ऊँचा सन्देश सुनाया गया और समझाया गया तो आत्मकल्याण का रास्ता लेकर वो उस असल की खोज में लग गए और उन्होंने उस सत्य को पा लिया; आज आप उनसे पूछेंगे तो वो इशारों में आपको बताएंगे और यदि आप उन्हीं की तरह उस रस्ते पर चलने लगें तो आप भी पा लोगे। बाबा जयगुरुदेव अपने महत्वपूर्ण सन्देश को इशारे में समझते हुए कहते हैं कि- "आपको मौका दिया है कि आप दरवाज़े पर, ऊँचे मुकाम पर, ऊँची मंज़िल पर बैठे हुए हो,दोनों आँखों के बीचों बीच, तो यहीं से ऊपर चले जाओ, तो आप किसी से पूछते ही नहीं हो। किसी के पास जाओ। लोग रास्ता पा कर लग गए ऐसे कि दया हो गई उन पर। वो समझ गए कि अभी तक तो हमने कुछ किया नहीं.. अब कर लें। तो लग गए तो उनका होने लगा। ये सब ऐसे ही हैं, जो काबिल हैं जानते ही नहीं थे कुछ, जब धीरे धीरे उनको सुनाया और कराया तो चल पड़े। अब इनसे पूछो तो आपको इशारा बताएंगे। आप भी इन्हीं की तरह से जब चलने लगोगे तो तुम भी ऐसे ही हो जाओगे।


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बुधवार, 5 जनवरी 2022

अब भी समय है देर हो जाने से पहले चेत जाइये

कितने कितने सतयुग त्रेता द्धापर और कलयुग बीत जाएंगे और ये मनुष्य शरीर नहीं मिलेगा। ये है लम्बा चौड़ा चौरासी का और नरकों और दोज़ख का घेरा। उनमें डाल दिया तो निकलना मुश्किल। ये सब वहाँ इसी मनुष्य शरीर के बुरे कर्म करने से गए। जब आपने खराब काम किया तो आपको पशु पंछी में.. और खराब काम किया तो नरकों में भेज दिया, सीधा किसी जीवात्मा को नहीं भेज सकते ये। जो मालिक ने दान में दिए हैं इनकी सेवा करने पर और खुश हो गए, तो सीधा नहीं भेज सकते हैं तो इन्होने जो विधान बनाया उसका उल्लंघन आप करेंगे तब वो भेजेंगे। ये सब जीवात्माएं सब के सब चर अचर में खचाखच भरी हुई हैं। ये सब इसी दुष्कर्मों से वहां गई हैं।

Baba Jai Guru Dev
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बाबा जयगुरुदेव बताते हैं कि काल भगवान् ने अकल्पनीय अगणनीय काल तक उस कुल मालिक की तपस्या की जिससे प्रसन्न होकर कुल मालिक ने वरदान मांगने को कहा तो इन्होने राज मांग लिया, और जीवात्माओं का भण्डार मांग लिया। कुल मालिक ने ये कहकर दिया कि इन्हें सताना मत मैं इन्हें वापस ले आने के लिए अपने लोगों को भेजता रहूंगा। जब जीवात्माएँ अपना अपना समय पूरा करके वापस जाने लगीं तो काल भगवान् ने सोचा कि ऐसे तो मेरा पूरा भण्डार खाली हो जाएगा, फिर मैं राज किस पर करूँगा? तब उन्होंने विधान बना दिया कि जो जैसा करेगा उसे अपने कर्मों का कर्ज़ा अदा करना पड़ेगा, ऐसे बिना कर्ज़ा चुकाए कोई यहाँ से जा नहीं सकता। चार खान और चौरासी लाख योनियाँ बनाईं स्वर्ग नर्क बनाए। जो जैसा करेगा उसको वैसा ही फल भोगना पड़ेगा; अच्छे का अच्छा और बुरे का बुरा। इसलिए जीवों को अपने कर्मों का फल भुगतना ही पड़ता है , कर्म कर्ज़ा चुकता किये बिना कोई यहां से नहीं जा सकता। इस तरह इसी घेरे में चक्कर काटते काटते  ना जाने कितने वर्ष कल्प सदियाँ और युग बीत गए जीवों का कर्ज़ा बढ़ता ही चला गया चुकता नहीं हुआ और जीव यहां इस कदर फंस गए कि अब तो उन्हें अपने निज देश की अपने वतन की अपने सच्चे पिता की यहाँ तक कि खुद अपनी भी कोई याद तक नहीं रही कि मैं कौन हूँ, कहाँ मेरा असल घर है, मैं कहाँ से आया हूँ, कौन मेरा सच्चा पिता है, मैं कैसे यहां आ गया, कैसे मैं यहाँ फंस गया, क्यों मैं बार बार जन्म लेता हूँ फिर मरता हूँ फिर जन्म लेता हूँ फिर फिर जन्मता मरता हूँ; आखिर इसके पीछे उद्देश्य क्या है? तब प्रभु के भेजे सच्चे महात्मा जीव को सब कुछ याद दिलाते हैं कि ये देश तुम्हारा नहीं है, तुम्हारा देश कहीं और है, तुम्हारा सच्चा पिता कहीं और है और तुम्हारी राह देख रहा है और मैं तुम्हें लेने आया हूँ और तुम चलो मेरे साथ मैं तुमको तुम्हारे सच्चे पिता से मिलवा दूंगा, लेकिन काल भगवान् की शक्तियां बराबर जीव पर नज़र रखती हैं उसे बराबर फंसाए रहती हैं, इस तरह माया ने जीव को अपने पाश में उलझाए रखा हुआ है कि उसे महात्माओं की बातें झूठ लगती हैं, वो उन्हें सुनना ही नहीं चाहता। महात्मा बराबर समझाते रहते हैं कि मेरी बात मान लो मनुष्य शरीर में रहकर ही तुम अपने घर वापस चल सकते हो, ये मौका निकल गया तो फिर चौरासी लाख योनियों का चक्कर लगाना पडेगा और सदियां बीत जाने पर भी ये मनुष्य शरीर दोबारा नहीं मिलेगा, बहुत कष्ट उठाना पड़ेगा। लेकिन काल और माया के चंगुल में फंसे जीव समझ ही नहीं पाते, जो समझ जाते हैं वही विरले जीव ही अपने घर वापस जा पाते हैं। बाकी तो सभी यहीं भवसागर में गोते लगा रहे हैं। इसलिए अब भी समय है देर हो जाने से पहले चेत जाइये।


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मंगलवार, 4 जनवरी 2022

जितने महात्मा आए सभी को लोगों ने तकलीफ दी

बहुत सारे लोग आध्यात्म के सरल ज्ञान को भी धर्म और मज़हब की रेखाओं में बांटकर लकीर के फ़कीर बने रहकर सच्ची चीज़ को भी लेने से ठुकरा देते हैं। ऐसे लोगों के लिए बाबा जयगुरुदेव ने संकेत देते हुए कहा कि- जब सबको ये बात बता रहे हैं कि उस ईश्वर को पाने का खुदा के दीदार का ये सच्चा रास्ता है इसको लो और इस तरह से परमात्मा का ध्यान और खुदा की इबादत करो इस से ईश्वर प्रसन्न होगा, खुदा खुश होगा और तुम उसका दर्शन दीदार कर सकोगे, ये करो; तो हमारे कुछ लोग ये कहेंगे कि हमारे यहाँ तो खुदा की इबादत ऐसे नहीं होती है...

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 ..अरे तुम नहीं जानते हो , मोहम्मद साहब को जो तकलीफ दी लोगों ने , वो कहने के लायक नहीं। तो जब तुम महात्माओ को और फ़क़ीरों को तकलीफ देते हो तो वो ऐसी चीज खड़ी कर देते हैं कि कोई कभी भी उस से निजात नहीं पा सकता; फिर बस ऐसे ही उठते बैठते रहो वो खुदा कभी खुश नहीं होगा और तुम उस खुदा का दीदार कभी न कर सकोगे। .. तो तुम ये बताओ कि मोहम्मद साहब को तुमने कितनी तकलीफ दी? तुमने कबीर साहब को तकलीफ दी, रैदास को तकलीफ दी, मीराबाई को तकलीफ दी, गोस्वामीजी को तकलीफ दी.. जितने महात्मा आए सबको तुमने बहुत तकलीफ दी; तो ये बताओ कि तुम आराम से रह सकते हो? पहले सोचने की बात है। इसलिए शरीर नहीं मिलता है। 

इस सन्देश के माध्यम से बाबा जयगुरुदेव ने साफ़ सन्देश दे दिया कि ये शरीर मिलता है तो महात्माओं की शरण में जा कर उनको खुश करके उनसे सच्चा रास्ता लेकर उस सच्चे मालिक को प्राप्त करने के लिए; ये काम कर लो, अगर तुमने इस बार ये काम नहीं किया तो ये मौका बार बार नहीं मिला करता। 



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ऐसे लोगों को ये अनमोल मनुष्य शरीर दोबारा नहीं मिलेगा

बाबा जय गुरु देव ने अपने एक संदेश में बताया कि 'किस तरह के लोगों को' ये अनमोल मनुष्य शरीर अब दोबारा जल्द नहीं मिलेगा। हुज़ूर फरमाते हैं कि जितने भी लोग हैं खा-पी-सो रहे और लूट-पाट, गाली-गलौज सब कर रहे, इनको मनुष्य शरीर नहीं मिलना है, कोई भी हो... चाहे वो किसी जात के हों, उससे क्या मतलब.. इंसाफ इंसाफ है।

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 इसके बाद बाबा जयगुरुदेव चेताते हुए कहते हैं कि तो अब आप लोग शुद्ध आहार करो, अशुद्ध मत करना। फिर इशारे में कहते हैं कि हमने कल आप को सुगम, सीधा सरल रास्ता नामयोग साधना का बताया..  और ये कहा कि तुम लेटकर आँख बंद करो... कान बंद करो... और मन को, बुद्धि को, चित्त को इधर से चारो तरफ से हटाकर, इधर अंदर कान के साथ.. अंदर आंख के साथ लगा दो और पंद्रह दिन तक तुम लेटकर कर लो तुम्हारा कान खुल जाएगा और तुम अंदर में अनहद धुनि, वाणी और वेद वाणी सुनने लगोगे। इस बात से बाबा जयगुरुदेव ये समझाना चाहते हैं कि नाम योग साधना इस कलयुग का सबसे सरल योग साधना का रास्ता है, जिसमें कोई नियम-कर्म नहीं, कोई भेद-भाव नहीं, सबके लिए सुलभ कोई भी कर सकता है... कभी भी किसी भी उम्र में, किसी भी अवस्था में कर सकता है और कहीं भी, कैसे भी बैठ कर कर सकता है, इसमें कोई दोष नहीं; इस से सरल साधना न कभी थी, न कभी किसी और युग में हो सकती है। हर युग में कड़ी साधना, कठोर तपस्या होती है; जो कोई विरले ही कर पाते हैं और जिसमें कोई-कोई ही सफलता प्राप्त कर पाता है। ...लेकिन कलयुग में जब संतों ने देखा कि कलयुग का जीव बहुत दुर्बल है और वो ये कठोर साधन नहीं कर सकता तो उन्होंने अपार दया करके इसको सुलभ और सरल यानि आसान बना दिया। इसमें आपको घर छोड़कर जंगलों में नहीं भटकना, परिवार छोड़कर पहाड़ों, गुफाओं, कंदराओं में नहीं भटकना, गर्मी-सर्दी-बरसात सहनकर पानी में खड़े रहकर या पेड़ पर उलटे लटककर वर्षों की कड़ी साधना तपस्या नहीं करनी क्योंकि आप ये कर भी नहीं पाओगे; अपने घर परिवार में रहकर बच्चों की सेवा, आए-गए का सत्कार, खेती-दुकान-दफ्तर का अपना रोज़मर्रा का रोज़ी-रोटी का काम मेहनत और ईमानदारी से करते हुए चौबीस घंटों में से कुछ समय बचाकर, बैठकर-लेटकर जैसे चाहो आराम से... जो रास्ता नाम-योग साधना का संतों ने दिया, उसको करके आप अपने घर में रहते हुए उस ईश्वर का दर्शन कर सकते हो, ये इतना आसान है कि दुनिया में चारों तरफ फैले अपने ध्यान को एक जगह एकाग्र कर लो तो तुम्हारा काम हो जाए। कितने ही लोग ऐसे हैं जो ये कहते हैं कि कलयुग में ईश्वर का दर्शन हो ही नहीं सकता, या उन्हें लगता है कि ये बहुत मुश्किल है, तो उनके लिए जो अपने मन में संतों महात्माओं की बात पर संशय रखते हैं, बाबा जयगुरुदेव हँसते हुए कहते हैं कि- जब हम आपको ये कह रहे हैं तो आपको कुछ न कुछ तो सोचना चाहिए।


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सोमवार, 3 जनवरी 2022

अब ये मनुष्य शरीर दोबारा नहीं मिलेगा

महात्मा कहते हैं कि कितने युग और कल्प बीत जाते हैं और कई जन्मों के पुण्य जमा होते हैं तब ये मनुष्य शरीर मिलता है ऐसे आसानी से नहीं मिल जाता ; और तुम इसको बेकार की चीजों में खोए चले जाते हो। इसी बात को एक सत्संग प्रवचन के दौरान समझाते चेताते हुए बाबा जयगुरुदेव कह रहे हैं कि- "तुम हमारी बात फिर सुन लो, ये मनुष्य शरीर जब भजन करोगे तो बचेगा, नहीं तो अब नहीं मिलेगा..

Jaigurudev Baba
JaiGuruDev is the name of God

 इस शरीर को छोड़ने के बाद ये दोबारा नहीं मिलेगा, और भजन करने लगो.. तो ये मिल जाएगा.. तो मिलेगा.. क्योंकि आपने शुरू किया अपना काम... और जब शुरू किया है तो जब तक पूरा नहीं होगा ये मिलेगा.. बराबर मिलता रहेगा। क्योंकि यहाँ (सुरत पर) जो बोझा लदा हुआ है उसकी हो जाएगी सफाई , तो शरीर फिर मिलेगा। क्योंकि जाना तो घर है, और घर का भेद मिला है। और कल आपका समय आया और आपकी मृत्यु हो गई तो जन्म होगा मनुष्य शरीर का और फिर वो महात्मा मिलेंगे और काम शुरू हो जाएगा।"

इस वचन में साफ़ शब्दों में उन्होंने कहा इस जन्म में भजन करने का काम शुरू करोगे और अगर अधूरा भी रह गया तो फिर इस काम को पूरा करने के लिए तो ये मनुष्य शरीर मिल जाएगा लेकिन अगर नहीं तुमने किया तो अब ये दोबारा नहीं मिलेगा।

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